Karpoori Thakur Bharat Ratna: जननायक को भारत रत्न दे BJP ने खेला मास्टर स्ट्रोक, समाजवादी नेता की विरासत पर भगवा पार्टी का दावा मजबूत?

लालू प्रसाद यादव भले ही खुद को जननायक कर्पूरी ठाकुर का सबसे बड़ा चेला बताते हों और नीतीश कुमार खुद को उनका सबसे बड़ा अनुयायी बताते हों, लेकिन बीजेपी मरणोपरांत कर्पूरी ठाकुर को ये सम्मान देकर अति-पिछड़ों में यह संदेश देने में कामयाब हो गई है कि अति-पिछड़ों का सम्मान बस बीजेपी ही करती है.

Karpoori Thakur
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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा. 24 जनवरी को जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म शताब्दी समारोह मनाने की तैयारी चल रही है. इससे पहले देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार जननायक को देने की घोषणा राष्ट्रपति भवन से की गई. कर्पूरी ठाकुर के लिए सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार की घोषणा के बाद उनके बेटे रामनाथ ठाकुर ने केंद्र सरकार का आभार जताया और कहा कि हमें 36 साल की तपस्या का फल मिला है. रामनाथ ठाकुर जेडीयू के नेता हैं और राज्यसभा सदस्य हैं. राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद हिन्दुत्व के रथ पर सवार बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले जननायक को सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार देने की घोषणा कर मास्टर स्ट्रोक खेला है.

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद विपक्ष की राजनीति बेरंग है. बीजेपी विरोधी पार्टियां धर्म का काट जाति से खोजने की तैयारी कर रही थीं. इसमें उनके लिए अतिपिछड़ों के सबसे बड़े नेता कर्पूरी ठाकुर बड़ा सहारा थे. 24 तारीख को पटना में आरजेडी, जेडीयू और वामदल कर्पूरी ठाकुर की याद में बड़ा कार्यक्रम कर बीजेपी की तरफ छिटक रहे अतिपिछड़ों को साथ लाने की कवायद करने की तैयारी में थे.

लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की पार्टी के नेता इससे पहले उन्हें भारत रत्न देने की मांग कर माहौल भी बना रहे थे, लेकिन केंद्र सरकार ने सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार देने की घोषणा कर सभी सियासी सरगर्मियों पर पानी फेर दिया है. बीजेपी ने जो कार्ड खेला है, उसका जवाब विरोधियों के पास फिलहाल नहीं दिख रहा है.

क्यों जरूरी हैं कर्पूरी ठाकुर?

देश के पहले उपमुख्यमंत्री और दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर नाई जाति से थे. यहां जननायक को जाति से जोड़ने की हिमाकत नहीं एक मजबूरी है, क्योंकि बिहार की राजनीति की बात बिना जाति के नहीं हो सकती है. बिहार की राजनीति का हर गुणा-भाग जाति पर ही आधारित होता है. इसलिए इसका जिक्र जरूरी हो जाता है. बिहार में नाई (हज्जाम) समाज की आबादी दो प्रतिशत से भी कम है.

इसके बाद भी कर्पूरी क्यों जरूरी हैं? वामपंथी हों या दक्षिणपंथी, मध्यमार्गी कहने वाली कांग्रेस या कथित समाजवाद की राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की पार्टी आरजेडी और जेडीयू. ये सभी पार्टियां कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक विरासत के लिए हाय-तौबा उनकी मौत के 36 साल बाद भी क्यों कर रही हैं? तो इसका जवाब है कर्पूरी ठाकुर का बिहार की राजनीति में सबसे बड़ा अति-पिछड़ा नेता होना है.

100 जातियों के नेता हैं जननायक कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर छोटी-छोटी आबादी वाली 100 से अधिक जातियों के नेता थे या कहें मृत्यु के बाद भी हैं. ये जातियां भले ही अकेले कोई बड़ी राजनीतिक हैसियत नहीं रखती हैं, लेकिन मिलने के बाद करीब 29 प्रतिशत वोट का बड़ा पैकेट तैयार करती हैं और इन्हें साधने के लिए बीजेपी ने जो मास्टर स्ट्रोक खेला है, उसका फायदा बीजेपी को लोकसभा चुनाव में मिल सकता है.

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले एक ऐसा ट्रंप कार्ड खेला है, जिसका लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के पास कोई जवाब नहीं है. बिहार में बीजेपी जहां राम मंदिर के सहारे मजबूती से आगे बढ़ रही थी, वहीं अब सूबे के सबसे बड़े अति-पिछड़ा नेता को मरणोपरांत ये सम्मान देकर सबको चित्त कर दिया है.

UPA सरकार में मंत्री थे लालू यादव, फिर भी नहीं दिला पाए ये सम्मान

लालू प्रसाद यादव भले ही खुद को कर्पूरी ठाकुर का सबसे बड़ा चेला बताते हों और नीतीश कुमार खुद को उनका सबसे बड़ा अनुयायी बताते हों, लेकिन बीजेपी अति-पिछड़ों में यह संदेश देने में कामयाब हो गई है कि अति-पिछड़ों का सम्मान बस बीजेपी ही करती है. लालू प्रसाद यादव यूपीए की केंद्र सरकार में मजबूत केंद्रीय मंत्री थे. इसके बाद भी वह जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न नहीं दिला पाए.

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